विश्व जल दिवस 2025 पर मानव रचना में जल विशेषज्ञों ने ग्लेशियरों और झरनों के संरक्षण की अनिवार्यता पर दिया जोर

फरीदाबाद, 21 मार्च 2024: मानव रचना इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च एंड स्टडीज़ (MRIIRS) के सेंटर फॉर एडवांस्ड वॉटर टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट (CAWTM) ने ‘वॉटर फॉर पीपल’ के सहयोग से विश्व जल दिवस के अवसर पर ग्लेशियर संरक्षण और सतत जल प्रबंधन पर एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम का आयोजन किया। इस सम्मेलन में वैश्विक शोधकर्ताओं, उद्योग विशेषज्ञों, नीति-निर्माताओं और सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और स्प्रिंगशेड प्रबंधन, जलवायु कार्यों के माध्यम से ग्लेशियर संरक्षण और भूजल संसाधनों के सतत प्रबंधन पर चर्चा की।
कार्यक्रम में अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ केंटकी के प्रसिद्ध जल शोधकर्ता प्रोफेसर एलन फ्रायर ने मुख्य वक्तव्य दिया, जिसमें उन्होंने झरनों के प्रबंधन और उनके ग्लेशियरों से संबंध पर महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। केंद्रीय भूजल बोर्ड, जल शक्ति मंत्रालय के सदस्य (मुख्यालय) डॉ. ए. अशोकन और वर्ल्ड वाइल्ड फंड फॉर नेचर (WWF)-इंडिया के वरिष्ठ निदेशक डॉ. सुरेश बाबू ने भारत में भूजल संसाधनों के उपयोग, नीति दृष्टिकोण, ग्लेशियरों की भूमिका और जल पर्यावरण व समुदाय से जुड़े विषयों पर अपने विचार रखे।
कार्यक्रम में प्रोफेसर एलन फ्रायर ने हिमालयी क्षेत्र के स्प्रिंग सिस्टम के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने अपने शोध के आधार पर बताया कि “स्प्रिंग सिस्टम में गर्मी और शरद ऋतु के दौरान प्रवाह में कमी देखी जा रही है। पीछे हटते ग्लेशियर और पिघलते जल स्रोत इसकी प्रमुख वजह हैं।”
डॉ. साहा, चेयर प्रोफेसर, CAWTM और बोर्ड प्रेसिडेंट, वॉटर फॉर पीपल इंडिया ने भारत में जल संकट की बढ़ती चिंताओं पर चर्चा करते हुए कहा, “भारत के पास विश्व की कुल भूमि का केवल 2.4% हिस्सा है, लेकिन इसकी जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का 18% है। ऐसे में, ताजे पानी की कमी भारत में एक बड़ी चुनौती बन रही है। हिमालय से सटे गंगेटिक प्लेन्स में जलवायु परिवर्तन ग्लेशियरों को प्रभावित कर रहा है और इससे नदियों और जलभृतों एक्वीफर्स के प्रवाह में अनिश्चितता उत्पन्न हो रही है। इस स्थिति में तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।”
डॉ. अशोकन ने भारत में भूजल प्रबंधन और संरक्षण नीतियों पर चर्चा करते हुए कहा, “भारत में भूजल के अंधाधुंध दोहन को नियंत्रित करना जरूरी है, लेकिन यह एक जटिल प्रक्रिया भी है। जहां उद्योगों के लिए सख्त नियम लागू हैं, वहीं कृषि क्षेत्र में अभी भी इसका नियंत्रण सीमित है। भूजल के सतत प्रबंधन के लिए आर्थिक जरूरतों और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखना जरूरी है।”
डॉ. सुरेश बाबू ने जल संरक्षण में विभिन्न क्षेत्रों के सहयोग की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, “ग्लेशियरों के पीछे हटने से नदियों का प्रवाह प्रभावित होता है और वे ऋतुजन्य अथवा सूखी होने लगती हैं। नदी केवल जल प्रवाह का नाम नहीं है, बल्कि यह जलजीवों और जैव विविधता का भी हिस्सा होती है। डॉल्फिन और घड़ियाल जैसे जलीय जीवों के संरक्षण में समुदाय की भागीदारी आवश्यक है।”
MRIIRS के कुलपति डॉ. संजय श्रीवास्तव ने वक्ताओं और प्रतिभागियों को धन्यवाद देते हुए कहा, “मानव रचना जल संरक्षण के लिए अनुसंधान और जागरूकता प्रयासों में हमेशा अग्रणी रहेगा। वैश्विक विशेषज्ञों के साथ सहयोग के माध्यम से हम जल संसाधन प्रबंधन में सार्थक बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं।”
इस आयोजन में IITs, जामिया मिलिया इस्लामिया जैसे प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों, प्रमुख गैर-सरकारी संगठनों, उद्योग निकायों (FICCI और CII) और नीति-निर्माताओं की भागीदारी रही, जिससे जल संकट के समाधान पर एक व्यापक संवाद स्थापित हुआ।

Mahesh Gotwal

Mobile No.-91 99535 45781, Email: mgnewsnetwork18@gmail.com, ऑफिस एड्रेस: 5G/34A बसंत बग्गा कांपलेक्स NIT Faridabad 121001

Related Articles

Back to top button